सबसे पहले यह जानते हैं कि भगवान जगन्नाथ कौन है और यह रथ यात्रा क्या है देखिए जगन्नाथ का मतलब होता है जगत और नाथ को मिलाकर के बना है जगन्नाथ तो जो जगत के नाथ हैं उन्हें जगन्नाथ कहा जाता है भगवान जगन्नाथ जी की मुख्य लीला भूमि उड़ीसा की पुरी है उड़ीसा की पुरी ही इनकी लीला भूमि है और उड़ीसा की पुरी को पुरुषोत्तम पुरी भी कहा जाता है
राधा और श्री कृष्ण की युगल मूर्ति के प्रतीक श्री जगन्नाथ जी हैं भगवती राधा और भगवान कृष्ण के संयुक्त प्रतीक हैं भगवान जगन्नाथ और भगवान कृष्ण भी उनका एक अंश माने जाते हैं
ओड़ीशा में भगवान जगन्नाथ बलभद्र यानी बलराम और सुभद्रा इनकी काष्ट की मूर्तियां लकड़ी की अर्ध निर्मित मूर्तियां स्थापित हैं और इनका निर्माण राजा इंद्रद्युम्न ने कराया था भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा आषाढ शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को जगन्नाथ पुरी में आरंभ होती है और यह रथ यात्रा इसलिए ज्यादा महत्त्वपूर्ण है क्योंकि रथ यात्रा में भगवान जगन्नाथ साल में एक बार जन सामान्य के बीच में जाते हैं और चूंकि साल में एक बार भगवान स्वयं अपने भक्तों के बीच में जाते हैं इसीलिए इसका इतना ज्यादा महत्व है
भगवान जगन्नाथ जी की रथ यात्रा आषाढ शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को जगन्नाथ पुरी में आरंभ होती है और यह रथ यात्रा दशवी तिथि को समाप्त होती है रथ यात्रा में मुख्यतः तीन रथ होते हैं सबसे आगे का जो रथ है उसे ताल ध्वज कहते हैं ताल ध्वज पर श्री बलराम रहते हैं उसके पीछे दूसरा रथ होता है पद्म ध्वज इस रथ पर माता सुभद्रा और सुदर्शन चक्र होता है और अंत में जो रथ होता है उसे गरुण ध्वज कहते हैं या नंदी घोष कहते हैं इस रथ पर स्वयं भगवान जगन्नाथ विद्यमान रहते हैं हैं तो सबसे आगे बलराम जी का रथ बीच में माता सुभद्रा का रथ और सबसे अंत में भगवान जगन्नाथ जी का रथ चलता रहता है